संघर्षरत रहने की भावना

जापान के हिरोशिमा में, जहाँ चेरी के फूलों की पंखुड़ियाँ हवा में नृत्य करती थीं, वहीं तकाशी नाम का, एक युवा योद्धा, जो अपने गुरु हिडेओ से, मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण ले रहा था। तकाशी ताकतवर था, लेकिन उसमें एक कमी थी - उसे असफल होने का भय लगा रहता था।

जब वह हर बार मुकाबले में हार जाता, उससे उसके मन में ओर निराशा भर जाती। "मैं बार-बार क्यों हारता हूँ?"  अपनी पोशाक झाड़ते हुए, वह अपने आप पर खीझता |

एक शाम, सतत अभ्यास के बाद, वह डोजो के बाहर बैठा हुआ, पुराने हिरोशिमा महल के अवशेषों को देख रहा था। वह महल, जो कभी नष्ट हो गया था, फिर से खड़ा था - संघर्ष और पुनर्निर्माण का प्रतीक।

उसी समय, गुरु हिडेओ उसके पास आए और संयत स्वर में बोले, "क्या तुम इस महल की कहानी जानते हो ?"

तकाशी ने सिर हिलाते हुए कहा, "यह नष्ट हो गया था ... लेकिन अब पुन निर्मित हो रहा है।"

गुरु हिडेओ मुस्कुराते हुए बोले, “तुम्हें भी ऐसा ही करना होगा।"



अगले दिन, अभ्यास के दौरान, तकाशी का मनोबल टूट रहा था। लेकिन इस बार, उसने अपनी आंतरिक कुंठा और निराशा को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। हर बार, वह तीव्रता से एक विश्वास के साथ खड़ा हो जाता, अपनी मुद्रा ठीक कर लेता, और अधिक अपनी शक्ति लगाता।

हफ्ते महीनों में बदल गए, और आखिरकार, एक स्थानीय टूर्नामेंट में, तकाशी एक शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वी के सामने खड़ा था। मुकाबले के दौरान वह प्रतिद्वंद्वी के जोर के प्रहार से गिर गया, लेकिन इस बार वह रुका नहीं - बल्कि अपने आत्मबल के साथ उठा।

एक फुर्तीले दांव के साथ, उसने अपने प्रतिद्वंद्वी को मात दे दी और मुकाबला जीत लिया।

गुरु हिडेओ तकाशी को जीता हुआ देखकर गौरवान्वित महसूस कर रहे थे। गुरु ने मुस्कुरा कर सिर हिलाते हुए बोले, "हर बार का गिरना एक नई उड़ान की तैयारी है, बस हिम्मत करके उठना ज़रूरी है।

यही एक योद्धा की असली पहचान है।"