सही वक़्त का पत्थर
ईरान में शिराज़ के नज़दीक पहाड़ियों में नविद नाम का एक सीधा-सादा चरवाहा रहता था। एक शाम, जब सूरज डूब रहा था, उसने देखा कि कुछ चोर पास ही आराम कर रहे एक व्यापारी के कारवां की ओर दबे पाँव बढ़ रहे हैं।
बिना एक पल भी सोचे, नविद ने एक पत्थर उठाया और उसे सबसे आगे वाले चोर पर दे मारा। ठीक उसी वक़्त कारवां के पहरेदार चौकन्ने हो गए। थोड़ी हाथापाई हुई, और हालाँकि व्यापारी तो बच गए, लेकिन नविद उतना भाग्यशाली नहीं रहा - चोरों ने पलटकर उसे बुरी तरह मारा, जिससे वह घायल और बेहोश हो गया।
अगले दिन, नविद ने एक छोटे से अस्पताल में आँखें खोलीं। वह व्यापारी, जिसका जान बचाई थी, कृतज्ञता से उससे मिलने आया और बिस्तर के किनारे सोने के सिक्कों की एक थैली रख दी।
नविद ने सोने की ओर देखा, फिर अपनी बँधी हुई चोटों की ओर, और हल्की मुस्कान के साथ कहा,
"ग़लत वक़्त पर दिए गए सोने से कहीं बेहतर है सही वक़्त पर फेंका गया एक पत्थर।"
व्यापारी समझ गया। सोना उस निस्वार्थ कार्य के मूल्य की बराबरी कभी नहीं कर सकता जो सबसे ज़्यादा ज़रूरत के वक़्त किया गया हो।