शेर का दिन
पुराने मैसूर की हलचल भरी गलियों में, नसीम नाम का एक डरपोक, अधेड़ उम्र का क्लर्क जिला कार्यालय में रहता था। बरसों से, उसने अपने आस-पास के भ्रष्टाचार पर आँखें मूंद रखी थीं। फाइलें रिश्वत के ढेर के नीचे दबी रहती थीं, गरीबों के लिए बनी जमीनें गुपचुप तरीके से नीलाम हो जाती थीं, और कोई कुछ नहीं पूछता था। नसीम अदृश्य रहकर जीवित रहा — सियार के जंगल में एक सियार।
हर दिन घर जाते समय, वह टीपू सुल्तान, मैसूर के शेर की मूर्ति के पास से गुजरता था। उसकी अटल नज़र हमेशा उसके साथ रहती थी। उसके दादाजी कहते थे, "असली साहस दहाड़ने में नहीं, बल्कि तब अकेले खड़े होने में है जब इसकी ज़रूरत हो।"
एक सुबह, मीनाक्षी नाम की एक आदिवासी महिला उसकी डेस्क पर आई। उसकी जंगल की जमीन एक जाली आदेश के तहत छीनी जा रही थी। नसीम ने उसकी आँखों में डर देखा — लेकिन उससे भी ज़्यादा, उसने वही लाचारी देखी जो कभी उसकी अपनी माँ को हुई थी जब उनका घर लालची अधिकारियों के कारण खो गया था।
उस शाम, नसीम ने कुछ ऐसा किया जो उसने पहले कभी नहीं किया था। उसने सारी फाइलें इकट्ठी कीं, उनकी प्रतियाँ बनाईं, और एक स्थानीय पत्रकार के कार्यालय में चला गया। "इसे छापो," उसने कहा। "इसमें मुझे सब कुछ खोना पड़ सकता है। लेकिन खामोशी ने पहले ही ज़्यादा ले लिया है।"
खुलासे ने शहर को हिला दिया। नसीम को निलंबित कर दिया गया। धमकियाँ मिलीं। लेकिन वह एक अजीब हल्केपन के साथ चला — जैसे कोई व्यक्ति जो जीवन भर झुकने के बाद आखिरकार सीधा खड़ा हो गया हो।
कुछ हफ़्तों बाद, नसीम एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गया और जब मीनाक्षी उससे अस्पताल में मिलने आई, तो वह वाकई एक घायल शेर की तरह जीवित होने पर गर्व महसूस कर रहा था। उसके साथ आए बुजुर्ग व्यक्ति ने अपनी जनजाति की एक कहावत उद्धृत की:
"तुम एक बार दहाड़े हो — और वह हज़ार जंगलों में गूँज उठी है।"
नैतिक शिक्षा:
सच का एक पल जीवन भर के समझौते पर भारी पड़ सकता है।
प्रेरणा:
सियार बनकर 1000 साल जीने से बेहतर है एक दिन शेर बनकर जीना। - महर्षि व्यास