गलती से सबक

कोरिया के बेओल्ग्यो जैसा शांतिपूर्ण शहर में, जहाँ पहाड़ियों और चेरी के सुंदर फूलों के पेड़ों के बीच, जीसू नामक एक प्रसिद्ध नटी रहती थी। उसके बेहतरीन अभिनय प्रदर्शन के कारण, लोग उसे "बेओल्ग्यो की उड़ती सारस" बोलते थे।


 बसंत ऋतु की एक संध्यापूरा शहर उसके अभिनय को देखने के लिए इकट्ठा हुआ। वह रस्सी पर उछलीघूमीऔर पूर्ण संतुलन के साथ आगे बढ़ी। उसकी हर अदा में निपुणता और सौंदर्य झलक रहा था। उसकी यह दक्षता लंबे समय के अभ्यास का फल थीलेकिन आज जब उसने अपने अंतिम कौशल को पूरा कर रही थीतो एक क्षणिक चूक हुईऔर वह गिर पड़ीजो उसके कार्यक्षेत्र में यह पहली बार हुआ था |

भीड़ में सन्नाटा छा गया। सभी लोग आश्चर्यचकित हुए और उनके मन में एक ही सवाल था, ‘जीसू कैसे गिर सकती थी?’

अपने गिरने पर शर्मिंदा होकर जीसू ज़मीन पर चुपचाप बैठी रही, तभी पास के मंदिर से एक वृद्ध साधु बाहर आए और मुस्कुराते हुए बोले, "यह तो वही बात हुई जैसे बंदर भी कभी-कभी पेड़ से गिर जाते हैं।"

जीसू ने आश्चर्य से उनकी ओर देखा और ग्लानिपूर्वक बोली  "लेकिन मैंने वर्षों तक अभ्यास किया है! मुझसे यह गलती कैसे हो सकती थी।"

साधु ने विनत भाव से कहा, " तुम्हें इसे स्वीकार करना चाहिए। सबसे निपुण व्यक्ति भी कभी-कभी असफल हो सकते हैंइससे उनकी महानता कम नहीं होती | महत्व तो इस बात से है, कि गिरने के बाद फिर से खड़े कैसे होते हैं?"

जीसू ने अपनी आँखों के आँसू पोंछे, एक गहरी साँस ली, और वापस रस्सी पर चढ़ गई। इस बार, वह ओर अधिक आत्मविश्वास और धैर्य से भरी थी।